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बस का इंतज़ार: कैसे डीटीसी दिल्ली की रफ़्तार को रोक रही हैं.

बस का इंतज़ार: कैसे डीटीसी दिल्ली की रफ़्तार को रोक रही हैं.
किसी शहर को समझने के लिए, आपको सबसे पहले उस शहर के रास्तो और उन रास्तो पर सफ़र करने के अंदाज़ को समझना चाहिए, और इस बीच आप उस शहर की खूबियाँ, खामियां और बाकी सब बारीकियां खुद-ब-खुद समझ जाते हैं. कोई शहर कैसे सुबह अपने काम के लिए घर से बाहर निकलता हैं, कैसे शाम को अपने घर वापिस लौटता हैं, कैसे फुर्सत के चंद पलो में एक दुसरे से मिलता हैं, और ऐसे ही कई सारे सवालों के जवाब आपको उस शहर की यातायात व्यवस्था में छुपे मिल जायेंगे. एक अच्छा शहर, आपको बस, मेट्रो, और आखिरी मिल पर टेढ़े मेढ़े रास्तो से घर लाने लेजाने वाले रिक्शे में हस्ता, मुस्कुराता, अपने ख्वाबो को उधेड़ता बुनता मिल जाता हैं. वही एक थका, हारा शहर बिरान बस स्टॉप, महंगी यातायात व्यवस्था, और निजी वाहनों की अंधी भीड़ में एक अजीब सी मायूसी के साथ खड़ा होता हैं. और आजकल वही मायूसी दिल्लीवालो की आँखों में भी दिखने लगी हैं. और आप वजह समझ ही चुके होंगे, दिल्ली की यातायात व्यवस्था, खासकर दिल्ली की बसे.

दिल्ली की हरी, लाल, और नारंगी बसे, जिन्हें प्यार से दिल्लीवाले दिल्ली परिवहन निगम के संक्षित नाम डीटीसी से जानते हैं, हलांकि नारंगी बसे डीआईएमटीएस (DIMTS) के अंतर्गत काम करती हैं, मगर दिल्लीवाले उन्हें भी प्यार से डीटीसी ही बुलाते हैं, वे अब दिल्ली की रफ़्तार को रोकने लगी हैं. दिल्ली को थकाने लगी हैं. दिल्ली के सपनो को एक तलाश में बदलने लगी हैं. और अगर ऐसा ही चलता रहा, तब दिल्ली को बाकी शहरो से पिछड़ने में देर भी नहीं लगेगी.

समस्या (शुरूआती लक्षण)
दिल्ली की परिवहन समस्या कब और कैसे शुरू हुई. शायद इस सवाल का कोई ठोस जवाब नहीं हो. शायद, जब तक कोई समस्या विकराल नहीं बन जाती हैं, तब तक उस समस्या पर किसी का ध्यान नहीं जाता हैं. और यह बात व्यक्तिगत स्तर पर भी लागू होती हैं. हम खुद कितनी बार छोटी छोटी बातों पर ध्यान देते हैं, जब तक वे एक हद्द से ज्यादा परेशान करने नहीं लगती हैं. फिर, प्रशाशन से यह उम्मीद क्यों. वे भी हम सब के बीच का एक हिस्सा हैं. वे भी उसी अनभिज्ञता से ग्रस्त हैं, जिस अनभिज्ञता से हम सब ग्रस्त हैं. और उनकी अनभिज्ञता के कारण भी कुछ अलग नहीं हैं: लालच, उद्दंडता, और दुसरो से कटाव. और अगर आप दिल्ली प्रशाशन के बीते कई फैसले को देखे, तब आप मेरी बात बड़ी आसानी से समझ जायेंगे.

फिर भी, हम दिल्ली की इस समस्या की शुरुआत 1992 से मान सकते हैं. दिल्ली प्रशाशन डीटीसी करमचारियों की चौथे वेतन आयोग के अनुसार भुगतान की मांग के बदले दिल्ली में रेडलाइन सेवा के अंतर्गत चार हज़ार प्राइवेट बस चलाने का एलान कर देता हैं. अक्टूबर 1992 में दिल्ली की सड़को पर प्राइवेट रेडलाइन बसे दौड़ना शुरू कर देती हैं. और यह सब जनता के लिए सुगम यातायात व्यवस्था के नाम पर किया जाता हैं. मगर छ: महीने के अन्दर ही रेडलाइन बसे 49 मौत और 130 गंभीर दुर्घटनाओ का कारण बनती हैं. दिल्ली के आम जन रेडलाइन बस चालको और संवाहको पर हज़ारो की संख्या में छेड़खानी और दुर्व्यवहार की शिकायते दर्ज करवाते हैं. और इन सब बढ़ते हादसों और शिकायतों के बीच, रेडलाइन बसों पर सख्ती और कार्यवाही के नाम पर 16 बसों का परमिट रद्द कर दिया जाता हैं.[1] हलांकि, रेडलाइन बसों की समस्या जस की तस बनी रहती हैं. 1996 में रेडलाइन बसे, जो अब ब्लूलाइन बस के नाम से जानी जाने लगी थी, अकेले 1996 में ही, 300 से ज्यादा मौत की जिम्मेदार बनती हैं. तत्कालीन, दिल्ली परिवहन मंत्री, राजिन्द्र गुप्ता, ब्लूलाइन बसों की हालत सुधारने की बात करते है. खानापूर्ति के लिए बयान दिया जाता हैं कि मई 1997 में दिल्ली में प्राइवेट तौर पर बस चलाने के परमिट की अवधि पूरा होने के साथ ही, ब्लूलाइन स्कीम को बंद कर दिया जाएगा.[2] हकीक़त में, कई सालो के जनविरोध के बाद ब्लूलाइन बसे अधिकारिक रूप से दिल्ली में जनवरी 2011, और दिल्ली के कुछ कम विकसित इलाको में जून 2012 में ही बंद हो पाती हैं.[3] 2011 में अपनी सेवा के आखिरी दिनों में भी, वे 19 गंभीर और 30 छोटे मोटे हादसों का सबब बनती हैं.[4] ऐसा नहीं हैं, दिल्ली प्रशाशन ने ब्लूलाइन बसों या इसके पिछले अवतार रेडलाइन बसों को सुधारने के लिए कुछ नहीं किया. इन सेवाओ में सुधार के लिए कई नियम बनाये गए. कई दिशानिर्देश जारी किये गए. मगर, ये सब नियम और दिशानिर्देश एक कागज़ के टुकड़े पर काले अक्षरों से कुछ ज्यादा नहीं थे. इस अवमानना के पीछे का असल कारण, ज्यादातर बस मालिको का राजनेता या राजनेताओ से सम्बंधित होना था. जिसमे ज्यादातर बस मालिक अपने व्यक्तिगत लाभ को सर्वोपरि मानते थे.

खैर, ब्लूलाइन के बंद हो जाने के बाद, डीटीसी की कमियां पहली बार नज़र आने लगी. जिन्हें लगभग चार हज़ार ब्लूलाइन बसों ने ढक रखा था. इस वक़्त, जनवरी 2011 में, दिल्ली परिवहन निगम के पास 6197 बसे थे, जिसमे से किसी भी दिन 5000 से ज्यादा बसे दिल्ली की सड़को पर चलती थी. मगर ये बसे भी, 2007 में अनुमानित जरूरी बसों की संख्या 11,000 से बहुत कम थी. इसके अलावा, जिस वजह से ब्लूलाइन को रद्द किया गया था, डीटीसी भी उस राह पर चल पड़ी थी. डीटीसी बस चालको और संवाहको के दुर्व्यवहार के किस्से आम हो चले थे. अकेले 2011 में ही डीटीसी बसे ने 89 गंभीर और 213 छोटे बड़े हादसों में लिप्त मिली.[4] दिल्ली परिवहन निगम के द्वारा जारी रिपोर्ट में बताया गया कि 2011-12 में डीटीसी बसों की वजह से 77 मौत हुई और 274 जन चोटिल हुए.[5] मगर इस वक़्त तक दिल्ली में सड़क हादसे इतने आम हो चले थे कि सड़क हादसे में हुई मौत एक आकडे से ज्यादा कुछ नहीं बची, या सरकारी तंत्र से जुड़े होने के कारण डीटीसी को एक अनकही छुट मिल रखी थी.

कई दिल्लीवाले अभी भी मानते हैं कि अगर ब्लूलाइन बसों को बंद करने की जगह, उनके लिए बनाये गए नियमो को ढंग से लागू कर दिया जाता, तब भी दिल्ली के सामने इतनी बड़ी परेशानी कभी खड़ी नहीं होती.

समस्या (असल लक्षण)
खैर, डीटीसी बीमार हैं, इसका पहली बार असल एहसास अप्रैल 2015 में होता हैं, जब दिल्ली प्रशाशन को तीसरी बार नयी बसों के लिए कोई बोली नहीं मिलती हैं. इस वक़्त, डीटीसी का कारवां घटकर 4705 रह जाता हैं,[6] जो अब जनवरी 2019 में घटकर मात्र 3944 रह गया हैं. वैसे, आप मन बहलाने के लिए 1634 नारंगी डीआईएमटीएस बसों का कारवां डीटीसी के बसों के कारवां में जोड़ सकते हैं, और डीटीसी बसों की कुल संख्या 5578 मान सकते हैं. मगर दिन प्रतिदिन जिस ढंग से डीटीसी की बसे पुरानी होती चली जा रही हैं, उसके हिसाब से 2025 तक डीटीसी के 99 प्रतिशत बसे कबाड़ बन जायेंगी, और शायद, आपके पास सफ़र के लिए एक भी डीटीसी बस ना बचे.[7]

धीरे धीरे, डीटीसी की बिमारी की खबर, जनवरी 2016 से कुछ दिल्ली वालो की जुबान पर आ जाती हैं. जनवरी 2016 में भारतीय रेलवे, दिल्ली की अब भूली जा चुकी, दिल्ली रिंग रेलवे लाइन से पैसेंजर ट्रेनों को हटाने का फैसला ले लेती हैं. हज़रत निजाम्मुद्दीन, तिलक ब्रिज (आईटीओ), शिवाजी ब्रिज (बाराखम्बा रोड), पटेल नगर, कीर्ति नगर, सरोजिनी नगर, लाजपत नगर, और ऐसे ही कुल 21 जगहों को जोड़ने वाली इस लाइन पर अब मात्र सुबह और शाम को एक ही पैसेंजर ट्रेन चलती हैं.[8] फिर उस पैसेंजर सेवा का भी खस्ता हाल हैं. और उस सेवा छिटककर आम राहगीरों का रुख सबसे पहले डीटीसी पर ही जाता हैं.

अंतत: 2017 में डीटीसी बीमार हैं, यह खबर दिल्ली मेट्रो के किराए बढ़ने से जग जाहिर हो जाती हैं. दिल्ली मेट्रो 2017 में दो बार अपना किराया बढ़ा देती हैं. पहली क्रिया बढ़ोतरी आम दिल्ली वाले सह जाते हैं, मगर दूसरी क्रिया बढ़ोतरी की मार ने उन्हें निजी वाहनों, और डीटीसी की तरफ धकेल देती हैं.[9] और वहा पर उनके पास इंतज़ार करने के अलावा कोई चारा नहीं बचता हैं.

समस्या (वर्तमान स्थिति)
आप अभी तक समझ ही चुके होंगे, डीटीसी के अच्छे हलात नहीं हैं. और ऐसा ही चलता रहा, जैसे हम पिछले भाग में बात कर चुके हैं, 2025 तक दिल्ली के पास सफ़र करने के लिए एक भी डीटीसी बस नहीं बचेगी. शायद, डीटीसी भी दिल्ली रिंग रेलवे की तरह यादो का एक हिस्सा बन जाएगी.

खैर, डीटीसी बसों की कमी के अलावा कई और परेशानियों से भी झुंझ रहा हैं. कुछ डीटीसी ने खुद खड़ी की हैं और कुछ डीटीसी को चलाने वाले प्रशासन तंत्र ने. बसों के बाद, डीटीसी की दूसरी सबसे बड़ी परेशानी हैं स्टाफ. पिछले कई सालो से डीटीसी ने नए स्टाफ की भर्ती नहीं की हैं, और 2025 तक कोई नयी भर्ती नहीं की जाती हैं, तब डीटीसी के पास मात्र लगभग 6500 कर्मचारी ही बचेंगे. जिसमे सूचि में अकेले 5052 बस चालक होंगे.[7] वर्तमान में भी डीटीसी को चलाये रखने के लिए, डीटीसी ने 14 हज़ार से ज्यादा का स्टाफ कॉन्ट्रैक्ट पर रख रखा हैं. कॉन्ट्रैक्ट पर काम कर रहे हैं स्टाफ की वजह से डीटीसी के सामने कुछ और नयी चुनौतियाँ खड़ी हो गयी हैं. मगर उन चुनौतियों का इस लेख में ज़िक्र करना, इस लेख की परिधि बाहर होगा. मगर हम यह कह सकते हैं कि यह स्थिति डीटीसी को चलने वाले प्रशासन तंत्र की बढती पूंजीवादी सोच का नतीजा हैं जो अधिक लाभ के लिए स्टाफ को स्थायी रोस्टर में रखने की जगह, कॉन्ट्रैक्ट पर रख रहा हैं. इनमे से कई कर्मचारी दस साल से ज्यादा अस्थायी कॉन्ट्रैक्ट पर काम कर रहे हैं. और आने वाले कुछेक सालो तक, वे अस्थाई रूप से ही काम करते रहे.[10] वही दूसरी ओर, डीटीसी पार्किंग की अलग समस्या से झुंझ रहा हैं. डीटीसी के पास अभी 50 बस डिपो हैं, जिनकी कुल बस को पार्क करने की क्षमता 6000 हैं. ये संख्या वर्तमान डीटीसी और डीआईएमटीएस की बसों को पार्क करने के प्रयाप्त हैं, मगर एक भी नयी बस के लिए नहीं. सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में दिल्ली सरकार ने नयी बसों को रखने के लिए प्रयाप्त जगह ना मिलने का यह दोष केंद्र सरकार के अंतर्गत काम कर रही दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) पर डाल दिया और डीडीए ने अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते हुए सारा दोष ज़मीन विवाद, और प्रयावानीय मंजूरी नियमो पर धकेल दिया.[11]

फिर डीटीसी की कार्यशैली में भी कमी हैं. जिसके ऊपर हमने अभी तक हमने बात नहीं की हैं. 2014-15 के आकड़ो बताते हैं कि डीटीसी एक दिन में अपने तय रूट का 80 प्रतिशत सफ़र भी पूरा नहीं कर पाती हैं. वो एक दिन में औसतन 188 किमी ही चलती हैं. वही एक दिन में डीटीसी की मात्र 85 प्रतिशत बसे ही सड़क पर दौड़ती हैं. दूसरी तरफ बैंगलोर में बंगालुरू मेट्रोपोलिटन ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन (BMTC) की बसे दिन में औसतन 270 किमी का सफ़र तय करती हैं, और उनकी 95 प्रतिशत बसे किसी भी समय सड़क पर दौड़ रही होती हैं. डीटीसी को सामान्य रूप से 20 घंटे चलना चाहिए. (सुबह 4 बजे से रात के 12 बजे तक), मगर डीटीसी आठ घंटे की दो शिफ्टो में ही काम करती हैं, मतलब, 16 घंटे की कुल कार्य अविधि. कुल चार घंटे का नुक्सान. कुछ विशेषज्ञ इन आकड़ो को सीधा डीटीसी के पास बसों की कमी से जोड़कर देखते हैं. और ये बात सही भी हैं, क्यूंकि डीटीसी की बसों में क्षमता से लगभग दोगुना लोग सफ़र करते हैं.[12, 13]

इसके अलावा, डीटीसी के कई रूट महिला यात्रियों के साथ छेड़खानी, स्कूली बच्चो को बस में सफ़र करने की आनाकानी, और आम जन के साथ रूखे व्यवहार के लिए ख्याति पा चुके हैं.[14] इन तीनो में से, स्कूली बच्चो के साथ होने वाला दुर्व्यवहार सबसे ज्यादा पीड़ादायक हैं. और ये व्यवहार डीटीसी के चालको और संवाहको तक सिमित नहीं हैं, यह उपेक्षा दिल्ली के आम जन के द्वारा भी की जाती हैं. कई यात्री खुद ही चालको और संवाहको से स्कूल के आगे बस ना रोकने को कहते हैं. कई स्कूली बच्चे डीटीसी बसों को पकड़ने के लिए कई सौ मीटर की दौड़ लगा देते हैं, और इस बीच कई बार वे चोट के शिकार बनते हैं. इन बच्चो के साथ होने वाली छेड़खानी एक अलग मुद्दा हैं, जिसे बच्चो की कच्ची समझ का सहारा लेकर दबा दिया जाता हैं.


एक आखिरी बार, हम डीटीसी की वर्तमान स्थिति के पीछे के कारण समझ लेते हैं. और यह जानने कि कोशिश करते हैं कि हम लोगो से भूल कहा पर हो गयी. असल में, भूल कई स्तरों पर हुई हैं. यह भूल दिल्ली में रहने वाले जागरूक नागरिको से भी हुई हैं. उनकी ठोस तरीके से डीटीसी बसों की मांग ना रख पाना इस भूल का सबसे बड़ा  हिस्सा हैं. मगर दिल्ली प्रशाशन का लचर प्रबंधन, और स्वयंहितकारी दृष्टिकोण डीटीसी की इस हालत का मुख्य जिम्मेदार हैं. यहाँ पर दिल्ली प्रशाशन का असल मतलब केवल दिल्ली की राज्य सरकार नहीं हैं. यहाँ पर दिल्ली प्रसाशन का मतलब केंद्र सरकार भी हैं. दोनों तंत्र डीटीसी, दिल्ली और दिल्लीवालो की परेशानियों से कोंसो दूर, एक दुसरे से अपने राजनैतिक लाभ के लिए लड़ने में व्यस्त हैं. दोनों एक दुसरे पर अपनी जिम्मेदारी का पल्ला झाड़ रहे हैं. दोनों ही दिल्ली की रफ़्तार को बढ़ाने की जगह रोक रहे हैं.

समाधान
दिल्ली बढ़ रही हैं. दिल्ली कुल जीडीपी के मामले में भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई से एक कदम पीछे दुसरे स्थान पर खड़ी हैं. दिल्ली प्रति व्यक्ति आय के मामले में मुंबई को बहुत पहले ही पछाड़ चुकी हैं, और नयी नौकरियों के सृजन के मामले में भी दिल्ली मुंबई से कई कदम आगे खड़ी हैं. यह वही दिल्ली हैं, जो मुंबई और यहाँ तक कलकत्ता के सामने कही भी नहीं टिकती थी, और अब वे एशिया के मुख्य आर्थिक केन्द्रों में से एक हैं. दिल्ली की इस बढती कहानी का एक हिस्सा डीटीसी भी हैं. जो दिल्ली के 41 लाख मुसाफिरों को दिल्ली में अपने सपने खोजने के लिए मदद करती हैं. खैर, दिल्ली को और भी आगे बढ़ना हैं. कई नए सपनो को आगे लेकर चलना हैं. दिल्ली, 2028 तक आबादी के मामले में, दुनिया का सबसे बड़ा शहर बन जाएगा, और एशिया का नहीं, एक वैश्विक आर्थिक उपरिकेंद्र, जिसकी आर्थिक उठा-पटक पूरे विश्व में महसूस की जा सकेगी. मगर यह सब दिल्ली डीटीसी के बिना नहीं कर सकता हैं.[16-18]

हमे दिल्ली की किसी भी परेशानी का हल ढूढने से पहले, यह समझना होगा कि दिल्ली सिर्फ एक शहर नहीं हैं, दिल्ली कई शहरो से बना एक शहर हैं. दिल्ली में एक निजी वाहन से सफ़र करने वाला एक शहर हैं, दिल्ली में दिल्ली मेट्रो और टैक्सी सर्विस से सफ़र करने वाला एक शहर हैं, और वही दिल्ली में डीटीसी से सफ़र करने वाला एक शहर हैं. यह सारे शहर एक दुसरे के बिना नहीं चल सकते हैं. इनमे से एक भी शहर के साथ की गयी छेड़छाड़ और अनदेखी से पूरी दिल्ली को नुकसान पहुच सकता हैं.

अब सवाल उठता हैं कि हम इस नुक्सान से दिल्ली को कैसे बचा सकते हैं, यानी हम डीटीसी को कैसे बचा सकते हैं. दिल्ली पर संसाधन कम हैं, और दिल्ली की बढती उमंगो के साथ, दिल्ली की जरूरते भी बढ़ रही हैं. और कुछ आसान दिखने वाले हल, समाधान, सुझाव इस परेशानी को और भी बढ़ा सकते हैं. इसलिए हमे दिल्ली के लिए समाधान उसकी बढती जरूरतों और रफ्तार के हिसाब से ढूढने पड़ेंगे.

मगर सबसे पहले, दिल्ली के प्रशाशन तंत्र को एक दुसरे के काम में अर्चन ना बनकर एक दुसरे के साथ चलना सीखना होगा. और दिल्ली की वर्तमान रफ़्तार को बनाये रखने के लिए कम-स-कम 2000 बसों को सड़को पर लाना होगा. दिल्ली को असल में अभी 11000 बसों की नहीं, इससे लगभग दोगुनी 20000 बसों की जरुरत हैं. और 2028 के हिसाब से 25000 बसों की जरुरत हैं. शायद, आप कहे, दिल्ली इतनी बसों को रखने का भार ही नहीं संभाल पाए. शायद, आप सही कह रहे हैं. दिल्ली के पास, जैसा हम बात कर चुके हैं, संसाधनों की कमी हैं, और दिल्ली यह जमीनी संसाधन कभी अर्जित ही ना कर पाए. मगर दिल्ली प्रशासन सिर्फ अपनी वर्तमान ज़मीनी उपयोग को देखे तो इस समस्या का भी हल उसे मिल जाए.

दिल्ली में अभी कुल 5700 से ज्यादा स्कूल हैं, जिसमे से 728 कैंपस में 1024 स्कूल दिल्ली सरकार के द्वारा चलाये जाते हैं. (दिल्ली सरकार 296 कैंपस में सुबह और शाम दो पालियों में स्कूल चलती हैं.) इन स्कूलों मे 15 लाख से ज्यादा बच्चे पढ़ते हैं. और इनमे से 85 प्रतिशत स्कूल में मैदान हैं.[19, 20] अगर दिल्ली सरकार इन मैदान वाले स्कूल में बच्चो को लाने लेजाने के लिए बस सेवा शुरू कर सकती हैं. इस कदम से (1) बच्चो के साथ होने वाले हादसों में कमी आएगी, (2) बच्चो की स्कूल छोड़ने की संख्या में कमी आएगी (3) और उनकी शिक्षा स्तर में भी बढ़ोतरी होगी, बल्कि ये मैदान रात के वक़्त लगभग 3000 डीटीसी बसों को रखने के लिए उपयुक्त साधन बन सकते हैं. और अगर ये योजना दिल्ली के सभी सरकारी और गैरसरकारी स्कूल में लागू की जाए तब डीटीसी बसों की यह संख्या 10 से 25 हज़ार के बीच कही भी हो सकती हैं.* ऐसा नहीं हैं कि यह कोई क्रांतिकारी सोच हैं. दिल्ली के 84 प्राइवेट स्कूल 725 डीटीसी बस सेवाओ का लाभ उठा रहे हैं. हमे बस यह योजना दिल्ली के सभी या कम से कम सरकारी स्कूल में चालु करनी होगी.[21]

दिल्ली और एनसीआर में ऐसे कई संस्थान हैं जो अपने करमचारियों को लाने लेजाने के लिए बसे खरीदते हैं, या फिर बसे किराए पर उठाना पसंद करते हैं. डीटीसी अपनी सेवा एक कॉर्पोरेट पैकेज बनाकर इन संस्थानों को बेच सकती हैं. और मुनाफे के साथ, अपनी बसों को रखने के लिए नयी ज़मीन खोज सकती हैं.

खैर, डीटीसी अकेले कभी दिल्ली का भार नहीं उठा सकती हैं. इसके लिए दिल्ली की रिंग रेलवे लाइन को दुबारा से जिंदा करने की जरुरत हैं, और उसके लिए दिल्ली के दोनों प्रशाशन तंत्र दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के एक साथ काम करने की जरुरत हैं. इसके अलावा, डीटीसी को दिल्ली मेट्रो के साथ की भी जरुरत पड़ेगी. हरेक संस्थान को अपनी पूंजीवादी सोच से पहले जनहित के बारे में सोचना होगा. उन्हें समझना होगा कि आम लोगो के सपनो की उड़ान में उनकी उड़ान लिखी हैं. कई रिसर्च ये साबित भी कर चुकी हैं कि सस्ती यातायात सेवा का सीधा सम्बन्ध बेहतर प्रयावरण, जन स्वास्थय, प्रति व्यक्ति आय, और राजस्व से जुड़ा हैं.[22]

सन्दर्भ सूचि
1.    https://www.indiatoday.in/magazine/indiascope/story/19930615-red-line-bus-fleet-wreaks-havoc-in-delhi-811185-1993-06-15
2.    https://www.outlookindia.com/magazine/story/taming-killer-buses/202730
3.    https://www.hindustantimes.com/delhi-news/blueline-s-20-year-killer-run-comes-to-a-close/story-E7MR5UQq8kRaoBXoQgLj7L.html
4.    https://delhitrafficpolice.nic.in/wp-content/uploads/2016/12/CHAPTER-4-INVOLVEMENT-OF-VEHICLES-AT-FAULT.pdf
5.    https://www.indiatoday.in/india/north/story/dtc-buses-road-accidents-pedestrians-mowed-down-drunken-driving-293710-2014-09-22
6.    https://timesofindia.indiatimes.com/city/delhi/No-new-buses-DTC-struggles-to-carry-45-lakh-Delhiites/articleshow/47044842.cms
7.    https://www.hindustantimes.com/delhi-news/ageing-buses-could-turn-dtc-history-by-2025-in-delhi-99-fleet-retires-in-5-yrs/story-M7KEqUEPWWx3yaFsfEakqM.html
8.    https://indianexpress.com/article/cities/delhi/ring-railway-in-an-ever-expanding-delhi-a-ghost-railway-service-lingers/
9.    https://en.wikipedia.org/wiki/Delhi_Metro
10.    https://www.thehindubusinessline.com/news/national/contract-dtc-staff-reach-kejriwals-house-to-demand-permanent-jobs/article20704960.ece
11.    https://www.indiatoday.in/pti-feed/story/delhi-facing-acute-shortage-of-public-transport-requires-11-000-buses-aap-govt-to-sc-1290644-2018-07-19
12.    https://www.downtoearth.org.in/blog/air/why-odd-even-system-can-bring-back-the-glory-of-bus-transport-52259
13.    https://www.youthkiawaaz.com/2016/12/as-commuters-continue-to-suffer-a-story-of-dtc-buses/
14.    https://timesofindia.indiatimes.com/city/delhi/why-delhi-girls-dread-the-infamous-dtc-route-544/articleshow/66054102.cms
15.    https://scroll.in/article/896594/this-study-settles-the-delhi-versus-mumbai-debate-the-capitals-economy-is-streets-ahead
16.    https://scroll.in/article/896594/this-study-settles-the-delhi-versus-mumbai-debate-the-capitals-economy-is-streets-ahead
17.    https://www.indiatoday.in/pti-feed/story/upswing-in-dtccluster-buses-daily-ridership-41.90-passengers-carried-per-day-sisodia-1194770-2018-03-21
18.    https://india.uitp.org/articles/delhi-will-be-world-biggest-city-2028
19.    http://www.edudel.nic.in/mis/eis/frmSchoolList.aspx?type=8v6AC39/z0ySjVIkvfDJzvxkdDvmSsz7pgALKMjL3UI=
20.    http://delhi.gov.in/DoIT/DoIT_Planning/ESEng.pdf
21.    https://www.hindustantimes.com/delhi-news/private-schools-making-neat-profits-from-dtc-buses-say-parents/story-MFxbRQkeDgwLXpX9pHwC6H.html
22.    https://www.napier.ac.uk/~/media/worktribe/output-952234/transport-and-economic-growth-powerpoint-presentation.pdf

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